मेरे माथे की बिंदिया
सजते ही गुम हुआ बचपन ....
खो गयी निंदिया
जीवन का सूत्र समझ गयी
जिस पल मंगल सूत्र से बंध गयी
कलाई में सजे क्या.... ये कंगन
जाने अनजाने से ....बंधे से बंधन
पाजेब डली पाँव में
चली आयी तेरे गांव में
अनकही मेरी बातें कहते रहे बिछुए
कभी दिल छुते कभी रूह छुए बिछुए
खूबसूरती का सामान हुए
उम्र कैद का फरमान हुए
गिरफ्त ऐसी की दिखती नहीं
पिंजर में हूँ ....पर हूँ नहीं
रंज है .....
अपनी पहचान खोती रही
ख्वाब पर संजोती रही
इक अलग
पहचान बोती रही
खुश हूँ ......की गिरफ्त में हूँ
पर न किसी से शिकस्त में हूँ
मैं तुझमें क़ैद तो हूँ ....
पर उम्र क़ैद .....मुझे मेरी पहचान की है
मेरी रोज़ की उड़ान की है
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