ख्वाइशों का धुआं उठा
मेरे धुंए के पैर नहीं
कच्चे से मन के
पक्के से चूल्हे पर
जानती नहीं .....
कौन बादल लिपट जाएगा
किस गली गुजर जाएगा
कौन बागीचे जम जाएगा
किस शजर पे रम जाएगा
मेरे धुंए के पैर नहीं
पर दो कोमल "पर" हैं ......जुड़े हुए
अरसा बीता थमी हुई हूँ
मुद्दत हो गयी .......उड़े हुए
दो नैनों में काजल डाले
कानों में घुंघरू के बाले
पायल बांधे .....यही धुआं
उफ़.....
क्या खूब फबेगा मेरा धुआं
इस झोले दिलचस्पी डाले
उस झोले मनमर्जी टाँगे
बह जाएगा मेरा ......धुआं
भर जाएगा खूब ......धुआं
आज फिर ....
ख्वाइशों का धुआं उठा
कच्चे से मन के
पक्के से चूल्हे पर
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