मुट्ठी भर अक्षर .....तेरे नाम के
वो जो थे ...तेरे मेरे एहतराम के
देखो आज फिर
सारे "खत" पोंछ रही हूँ
कितने बह गए ....
कितने रह गए .....सोच रही हूँ
"खामोश खत" .....जो कभी आबाद थे
इका दुक्का नहीं हज़ारों की तादाद थे
वो आस वाले...वो प्यास वाले
वो स्याही वाले .....वो दुहाई वाले
बड़बोले थे कभी ...कभी बस शर्मीले से
शिकवे थे कभी...कभी बस रसीले से
आज ये .....धुंधले नज़र आये
छुआ तो ....बस खोखले नज़र आये
अब न जुबां से कहते हैं ....न नैन से
न दिन से कहते हैं ....न रैन से
बस आधे अधूरे से
ये पिघले पिघले से
मुट्ठी भर अक्षर .....
खतों पर ये तेरे नाम वाले अक्षर
खुद को मेरे नाम से सटाते अक्षर
आज भी मुझे यही भाते अक्षर
वो तेरे नाम लिखे खत वाले
मुट्ठी भर .....अक्षर
awesome..
जवाब देंहटाएंthanks
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