लाल सूरज
माथे पर टिकता
सागर है माँ
कच्ची सी उम्र
वसुधा की विदाई
ज़िद्दी मानव
कोरा कागज़
बिकती रोशनाई
बधिर सच
पराये शब्द
फेसबुकिया कवि
गूंगे लाइक्स
अजब शौक
अपहृत आखर
गुमनाम मैं
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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