हाशिये से शुरू हुई थी ......
जब पहली बार
लफ़्ज़ों को पिरोया था
न कलम में धार थी
न रोशनाई में कालापन ही
पर ....
लफ़्ज़ों का समुंदर
कल्पनाओं का आकाश
एहसासों का असीम सेहरा
समेटे हुए
कोरे कागज़ को
दिल दे बैठी ......
जाने क्या सुकून पाया
पाती की फड़फड़ाहट में ,
कलम की लिखावट में,
कि बस घुलती चली गयी
बस लिखती चली गयी......
हर्फ़.... दिल बन बैठा
शब्द .....जुबान हुए
भाव... जहन हुआ
संवेदना .....नयन बनी
शोर सन्नाटा .....श्रवण शक्ति बने
रिश्ते..... हाथ हुए
ज़िन्दगी.... प्रेरणा बनी
और आप....
आप सब ....मेरी डायरी हुए
हम सब आपस में बंधने लगे
एक दूसरे पर मरने लगे
फिर जो
इनकी आशिकी रंग लायी
तो बस .....
मेरी कलम उड़ने लगी
रोज़ नया कुछ रचने लगी
खुश हूँ .....
कि कुछ कह पाती हूँ
हाथों से न सही ......
लफ़्ज़ों से
आप सब को छू आती हूँ
फेहरिस्त......
लम्बी हुए जा रही है
दोस्तों की ....
रचनाओं की ....
कल्पना की.....
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