उँगलियों के बीच .....
कलम नचाते रहे
कुछ .....सोच सोच
मुस्कुराते रहे
पर .....
कुछ लम्हे .....
लफ़्ज़ों में ना बंधे ......
तो बस..... ना ही बंधे !
इतना काफी है .....
या .....और लिखूं ?
© कल्पना पाण्डेय
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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