अधूरा ...अपूर्ण ...आधा ....
वैसे तो ये शब्द
कुछ-कुछ ही रीते लगते हैं
पर ये लदे हुए हैं
पूरा -पूरा विश्वास लिए
जीवन में नयी आस लिए
किसी के लिए जिद्द से
तो कभी जूनून से
किसी की जलन
तो किसी के जोश ने
इन्हें सतत चलते रहने का .....
"थोडा सा और" पा जाने का .....
श्राप सा दे रखा है
"अधूरी सोच" के बंधुआ मजदूर से ये
सबको सम्पूर्ण
बिलकुल पूरा
न बंट सकने वाला
हिस्सा पाने की चाहत है
इसी लिए तो हम - तुम
बेवजह ही आहत हैं
अपूर्ण से पूर्ण तक के
सफ़र में ही
तो हम जीते हैं
मुकाम पाते ही बोल पड़ते
अभी तो हम कुछ और ......रीते हैं
और इक बार और
उस तराजू में बैठ जाते
धकेलने के लिए
खुद को
नीचे ....
और नीचे जाने के लिए ....
उस पूर्ण वाले सिरे को छूने के लिए
वो पूर्ण ....वो सम्पूर्ण
जो अभी - अभी पाया था
बस चंद पल पहले ही
छूते ही फिर
अधूरा कर दिया .....हमने
अपूर्ण कर दिया .....तुमने
निरर्थक कर दिया ....सबने
कल्पना पाण्डेय
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