सूखे पत्ते
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016
बे लफ्ज़ यादें .....
दूर तक काफिला है .....
और
सफ़र जारी है , यादों का ....
हर मोड़ ,
हर दोराहे
पर
हर राह ,
हर चौराहे पर
बे लफ्ज़ यादें
हाथ हिलाती पूछती हैं
क्या हुआ ? हमारे उन वादों का ....
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