भूली बिसरी "पीतल" सी उमीदों पर
आज फिरइक बार
अपने नूर का "नमक "छिड़का है
शिकवे -गिलेकी खट्टी "इमली "से
मल मल के खूब रगड़ा है
अब जो खालिस"सोने "सा
चमकानिखरा है
उसका नाम मैंने "मुहब्बत "रखा है
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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