कल रात
डायरी के पन्ने खुले रह गए
उठा कर देखा ,
तो रचनाएँ
आधी अधूरी दिखी
कुछ शब्द लापता थे
हैरत में थी ......
लगा , कुछ हलचल थी आस पास
देखा तो पाया ......शब्द नाच रहे थे
फिर जाने क्या हुआ
दो शब्द..... "मैं" और "तुम" टकरा गए
देखते ही एक दूसरे को भा गए
तुम ..... मैं को
शब्दों की भीड़ से खींच लाया
दोनों इक दूसरे में समां गए
इतने में "प्रेम" दबे पाँव आया
और उनसे लिपट गया
तपिश महसूस हुई
मैं और तुम पिघल गए
"हम" हो गए
अद्भुत मंजर देखने
खूबसूरती ..... लगन
निष्ठा ..... प्रणय
नेह ..... ख्वाइश
ख्वाब ..... चाहत
ज़िन्दगी ..... खुश्बू
सुकून ..... ख़ुशी
एहसास ..... एहमियत
रिश्ता ..... स्पर्श
और भी न जाने
कितने शब्द चले आये
"हम" के इर्द गिर्द
बस ख़ुशी से झूमने लगे
नाच नाच के
थक हार के ,
सारे शब्द वापस चले आये
सो गए शायद
इक बार फिर
मेरी डायरी खूबसूरत नज़र आयी
बस ऐसे ही
कलम से "कल्पना" उभर आयी |
कल्पना पाण्डेय
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