वापसी का कोई , रास्ता नहीं रखते
दिन रात , बस लकीरों में ढूंढते हैं
हसरत , इस कदर बेसाख्ता नहीं रखते
लहज़े सरकाते हैं , पत्थर दिलों से
फिर दीवारों से , राब्ता नहीं रखते
दिल में , दबा लेते हैं अधूरी ख्वाइशें
महफ़िल में , उन्हें नाचता नहीं रखते
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें