सुना है ......"रंगरेज़" हो
बड़ा गुरुर रखते हो ....अपने हुनर का
कुछ उदास लफ्ज़ ...
कुछ नाराज़ लफ्ज़ ....
रख आएं हैं
तुम्हारी ड्योढ़ी पर
फेर दो...
मुट्ठी भर चांदनी इन पर
या....
क्षितिज का लाल गुलाल ही मल दो
या फिर .....
तारों की जगमगाहट दे दो
या ....
धनुक ही सिल दो इन पर
गर ये ....
मुझसे मुस्कुरा गए
मुझ से इतरा गए
तो वादा है .....
रंग लुंगी
अपनी सभी "कल्पनायें"...... तुम से
मुझे रंगना चाहोगे न ....रंगरेज़ ?
कल्पना पाण्डेय
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