ऐसा मैं क्या करता रहूंगा ?
"धर्म" ......
"इंसा" से पूछ बैठा इक दिन
इंसा .....
कुछ देर मुस्कुराया
फिर बोला .....
करता तो ......मैं ही रहूंगा
तू बस ...."चर्चा "ही रहेगा
सदियों से .....
"चर्चा" और "चर्चित" का खेल
चल रहा
कभी .....लुक्का छिप्पी वाला
कभी .......गेंद बल्ले वाला
कल्पना पाण्डेय
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