यादों का दरख़्त ........इश्क़ के पत्ते उगा दूं
कायम कर दूं ,ला.....बहार का मौसम
कुछ पुराने खत ,आ...... तुझको पढ़ा दूं
रूकने न दूं इश्क ......उम्र की देहलीज़ पर
संग गुज़रे लम्हे ........कालीन से बिछा दूं
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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