तुम्हारे "तुम"
और
मेरे "मैं" के बीच
शब्द और मौन का
इतना सशक्त सामंजस्य है कि
कभी शब्द रूठने नहीं देते
कभी मौन कुछ टूटने नहीं देता
मिनटों की चुप्पी भी
बहुत कुछ कह जाती है
तेरे मेरे बीच
चुटकी भर शब्द भी
इशारा कर जाते हैं
"हम - तुम" को
गुंजाईश नहीं रखते
"हम - तुम"
मौन को मौन से
भिड़ाने की
शब्द से शब्द
टकराने की
हमारी तरह
इनका गठबंधन भी
हो चूका है अब
शब्द और मौन का
सही मिश्रण
हमारे रिश्ते में
मिठास की वजह है
तभी तो तुम्हारे "मैं" में
मेरे "मैं" के लिए
ढेर सारी जगह है
सुकून में हैं "हम - तुम"
कभी मौन होकर
कभी शब्दों में होकर
शब्द और मौन को
एक सरीखा तौल कर
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