नारी हूँ मैं ,
ये न समझ
की एक बुत हूँ
तेरा हर दर्द धारण करती हूँ मैं
तेरा साथ आमरण देती हूँ मैं
कल्पना से परे हूँ ,
क्योंकि नारी हूँ मैं
तेरा हर व्यवहार सह जाती हूँ मैं
तेरे अहम् में कई बार ढह जाती हूँ मैं
सहन शक्ति से परे हूँ ,
क्योंकि नारी हूँ मैं
तेरे जीवन की लौ जलाती हूँ मैं
तेरे सपनों को हाथों से सजाती हूँ मैं
क्षमता से परे हूँ ,
क्योंकि नारी हूँ मैं
तेरी खुशियों को दामन में संजोती हूँ मैं
तेरी कमियों को आंसुओं में धोती हूँ मैं
आशा से परे हूँ
क्योंकि नारी हूँ मैं
अब इतना न खेलो मेरी आत्मा से
की प्रश्न पूछना पड़े ये खुद से
की क्या मैं बुत हूँ ?
या नारी हूँ मैं ?
या बुत बन गयी नारी हूँ मैं ?
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