सुरमई शाम में चमकता वो ताज़महल
कभी अजूबा , कभी रिश्तो की मज़ार सा हमशक्ल
मेरी यादें ...... मेरा सामान
कभी जागा ,कभी सोया सोया सपने सींचता
कभी बादलों पर दिखे मचलता ,कभी यूँ ही तनहा सिकुड़ता
मेरा मन ........मेरा भगवान्
शोख दिल कहो ,या कहो रोशन बहार
कभी रूह से ,कभी इंसा से करती हूँ इज़हार
मेरी मुस्कान ......मेरी पहचान
मिलते बिछड़ते हम जैसे घडी की सूइयां
धूप पड़े और थक जाऊ ,मेरे बादल दे छैय्यां
मेरे साथी .......मेरा गुमान
अनगिनत तारों सी मेरी ख्वाइशें ओढ़ता
हर दिन इक तारा मेरी मुट्ठी में छोड़ता
मेरा हमसफ़र ........मेरा आसमान
सादा दिल , सादे उदगार
शायद दोस्त बनाने चले आते हैं विचार
मेरी कल्पना ........ मेरा अभिमान
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें