कुछ मुट्ठी भर शब्द
हथेलियों में भर कर
देर तक हिलाती रही
इस प्रयास में कि…..
जी उठेंगे
कुछ कहेंगे वो
अपने आप बहेंगे
मेरे लिए इतना तो करेंगे वो
बंध जायेंगे टकराकर
बज उठेंगे घूँघरुओं की तरह वो
इक सुर पकड़ेंगे
इक ताल पे थिरकेंगे वो
चंद रंग मल लेंगे इधर उधर
रस भरे फिर कहाएँगे वो
इक उड़ान लेंगे सोच की
नयी लय , नयी लोच लाएंगे वो
सगरे भावों को लपेट खुद पर
बेजोड़ अंदाज़ हो जायेंगे वो
बेइन्तेहाँ खुबसूरत बंदिश वाले
इस हुनर से भी नवाज़े जायेंगे वो
चुप रहकर बोलने वाला फन
कम में बहुत कुछ बोल जायेंगे वो
दिल की सुन कर दिल की कहेंगे
और फिर कई दिल जीत लाएंगे वो
अंतस में मेरे छप कर
सिर्फ कल्पना के ही हो जायेंगे वो
हर एहसास को …..दिन
हर ख्याल को …..साँझ
हर ख्वाब को ……दीपक दिखाएंगे वो
फिर कभी
बेमोल
फ़िज़ूल
अर्थहीन
अपशब्द नहीं रह पाएंगे वो
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