सुनो....
मुझमें.... यादों का वो दरख़्त ...
आज भी ज़िंदा है ......
जो पत्ते तो बदल देता है .....
पर ...मिटटी कभी नहीं बदलता .....
तुमसे लिपटे हुए रहता है ...
"हरा"हो या "पीला" ...
तुम्हारा हर पत्ता ...
पकडे हुए रहता है
मेरे यादों का ..
दरख़्त ...
ज़िंदा है ....
© कल्पना पाण्डेय
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