हम भविष्य का कौन सा रूप रच रहे हैं ?
ऐसे क्यूँ लड़े बिना हार से बच रहे हैं?
जाँची परखी राह पर अब तक हम चले हैं
अब बच्चे क्यों हमारी सोच में ढल रहे हैं ?
क्यों हम अपनी आकांक्षाएं उन पर मल रहे हैं ? दीखता नहीं ?वो फूल खिलने से पहले गल रहे हैं
सीमा ना दो ...... पंख दो
ढंग ना दो .......संग दो
हल ना दो .........पहल दो
श्रम ना दो .........क्षमता दो
चिंता ना दो ........चित्त दो
अहम् ना दो ........हम दो
नज़र ना दो ........नज़रिया दो
वेदना ना दो ........संवेदना दो
फल न दो ...........फलसफा दो
उपदेश ना दो .......देश दो
काश ना दो .........आकाश दो
आज ना दो ..........आज़ादी दो
सीख ना दो ..........सलीका दो
विचार ना दो ........विचार शक्ति दो
व्यक्तित्व ना दो ....अभिव्यक्ति दो
भूत ना दो ............अनुभूति दो
कल्पना की नयी विरासत दो
कुछ अलग सोचने की आदत दो
अपने आईने में उनकी छवि मत ढूंढो
खुले आसमान में मेरे बादल ने क्या रूप धरा ये बूझो?
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