कुछ एक ...छोटे छोटे लम्हे
दबे पाँव
चले आये मुझमें
और
इक गहरा सा बादल
टिका गए मुझमें ....
यादों का
मैं क्या कम थी .....
बटोरती रही
हर जज़्बात
हर एहसास
इन रिस्ते लम्हों से
और भीगती रही
उम्र भर
बस तेरे नाम की
किश्तों वाली
बारिश में
कभी .....तरबतर हो कर
कभी ....बस बूंद को छूकर
कभी ....खुद में खोकर
कभी ...बस खुद की होकर
रविवार, 24 जनवरी 2016
लम्हे.......
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"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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