वो तनहा धूप
वहीँ पर समेट कर
वो इश्क वाली
शाल लपेट कर
इन सर्द वादियों
में चले आओ .....तुम
जहाँ दो अँखियाँ
सदियों से
तुम्हारा नाम
धुंध में ढूँढ़ती हैं
कुछ गर्माइश
एहसास की
इनको जरा
ओढाओ ......तुम
कुछ बर्फ हो चला
मुझमें है जो
अपने स्पर्श से
गलाओ...... तुम
आओ
कुछ देर ही सही
इस सर्द मौसम में
मेरा ख्वाब बन जाओ .....तुम
चाहे मुझ में रुक जाओ ......तुम
चाहे मुझमे गुज़र जाओ .......तुम
रविवार, 31 जनवरी 2016
तुम......
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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