365 दिनों का हिसाब बता रहा
और .....मैं उसे
" 365 नए ख़्वाब "......थमा रही
हिसाब लम्बा चलेगा ......हमारा
रहने दो .......लेना देना
वैसे भी ......
क्या मेरा .....क्या रह जाएगा तुम्हारा ?
कैलेन्डर पलटो ....
पहला ख्वाब बुला रहा
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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