तुम...
मैं ....
वह ....
हम ....
ये चार सर्वनाम नहीं
ज़िन्दगी के ऐसे किरदार हैं
जो चिर व्यस्त रहते हैं
सुबह से शाम तक ....
उस अकेले
बिलकुल अकेले
कर्मठ सूरज की तरह
उगते
विचरते
फिर अस्त रहते हैं
ऐसे ही
अपने आप से
अपने आप में
जिंदगी भर के
अभ्यस्त रहते हैं
और कोई पूछे तो
कहते फिरते हैं .....
हम तो यूँ भी
मस्त रहते हैं
भीड़ में भी अकेले
अकेलों की भीड़ में
एक विशेषण
"सफल "
का लगाये हुए
ये सारे सर्वनाम फिरते हैं
तुम...
मैं ....
वह ....
हम ....
मैं ....
वह ....
हम ....
ये चार सर्वनाम नहीं
ज़िन्दगी के ऐसे किरदार हैं
जो चिर व्यस्त रहते हैं
सुबह से शाम तक ....
उस अकेले
बिलकुल अकेले
कर्मठ सूरज की तरह
उगते
विचरते
फिर अस्त रहते हैं
ऐसे ही
अपने आप से
अपने आप में
जिंदगी भर के
अभ्यस्त रहते हैं
और कोई पूछे तो
कहते फिरते हैं .....
हम तो यूँ भी
मस्त रहते हैं
भीड़ में भी अकेले
अकेलों की भीड़ में
एक विशेषण
"सफल "
का लगाये हुए
ये सारे सर्वनाम फिरते हैं
तुम...
मैं ....
वह ....
हम ....
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