ज़िक्र तेरा होता है कुछ यूँ भी .....
नसीब से शुक्र सा
जुदाई के फ़िक्र सा
लकीरों से अनबन सा
दुआओं से जबरन सा
पत्तों पर रुकी ओसों सा
दिल पर कई बोसों सा
आँखों में भरे काजल सा
इक दीवाने बादल सा
इक बस इक फितूर सा
इश्क के उस गुरूर सा
तितली के ख्वाब भँवरे सा
इक लाजवाब चेहरे सा
रोज़ उसी फरमाइश सा
इक अनोखी ख्वाइश सा
प्रेम की पहली पाती सा
कभी पिघला जज़बाती सा
यादों में टहलते खुमार सा
इन्तेहाँ हो रहे प्यार सा
खुदा के उस जवाब सा
मेरे हुस्न के रुबाब सा
एक रुकी रुकी जुस्तज़ू सा
आश्ना मेरे हर पहलू सा
ओह हो !
जिक्र कुछ ज्यादा हो गया
फिर मिलूंगी .....
मेरा वादा हो गया
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