वही वही ....सी बातें
वही वही ...से अलफ़ाज़
पर .....हर सफ़्हा ....
इक अलग खुश्बू लिए
तेरी हर रंगत लिए
ऐसे की जैसे .....खत लिए ...
तुम खड़ी हो मेरे सामने
इक नया हर्फ़ ....
मेरी किताब में जोड़ने के लिए
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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