बहुत चाहा .....
की तेह लगाकर रख दूं ....
इस बेरब्त ज़िन्दगी को
रोज़ ही लड़ती हूँ...
रोज़ ही हारती हूँ ....
आज फिर हार गयी
कुछ ज़िन्दगी ....
परतों से ....खुश्बू बनकर महक गयी
कुछ सुराखों से .....हंसी बन टपक गयी
कुछ फ़िज़ूल ......बैठ गयी काई बनकर
कुछ इश्क में .....घुल गयी रोशनाई बन कर
© कल्पना पाण्डेय
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