हर बार नहीं ढल सकती मैं .....
तुम्हारे खूबसूरत साँचे में
हर बार नहीं लीप सकती मैं......
तुम्हारे शब्द अपने होठों पर
हर बार नहीं ओढ़ सकती मैं.....
तुम्हारी सोच अपने वजूद पर
बस .....कुछ देर अब
ताज़ा हवा भी खाने दो
हटाओ अपना बादल मुझसे
थोडा सूरज ....मुझ पर भी आने दो
ज़िंदा ......मैं भी तो हूँ
सोमवार, 25 जनवरी 2016
ज़िंदा ......मैं भी तो हूँ
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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