जब कभी मेरे शब्द
दूसरों तक पहुँचने से पहले ही
ग़लतफ़हमी के
बादलों को पार करते हुए
जख्मी हो जाते हैं
अपना प्रारूप खो देते हैं
और उन तक जो पहुँच पाता है
वो......
मेरी सोच ,
मेरे व्यक्तित्व के बिलकुल परे
प्रतीत होता है
मेरी कल्पना सेदूर
शायद .....
बहुत ही दूर
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