कविता तो "मैं "
बेलफ्ज़ होकर भी कर सकती हूँ .....
पर तुम्हें ....
कल्पना के पंख
पहनना रास नहीं आएगा
लो ... तुम्हारे लिए
शब्द ही कतार में खड़े कर देती हूँ .....
देखो ....कुछ समझ आये तो
कविता का वजूद.....कुछ शब्द ....कतार में ... मैं
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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