लफ्ज़ कतरा रहे
ख्याल लजा रहे
कलम शर्मा रही
कागज़ तर बतर हुए
अरसा हुआ .......
उन पर कुछ लिखे हुए
आज दिखे मेरी लेखनी
इश्क करते हुए
उनसे कुछ कहते हुए
" सिर्फ उनके "लिए बहते हुए
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें