"ज़िन्दगी" का ......इस्तकबाल करती हूँ
खुश हूँ.....
ज़िन्दगी को "पशोपेश" में डाल कर
कि.....
वो .....आ रही है ?
या
जा .......रही है ?
"ज़िन्दगी की ......कश्मकश"
या ....
"कसमसाहट .....ज़िन्दगी की"
क्या ......कहूँ?
© कल्पना पाण्डेय
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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