दिन के हर सफ़हे को .....पलट पलट के देखा
सारी शाम को .....खरोंच खरोंच के देखा
इस रात को .......उधेड़ कर रख दिया
हैरत में हूँ …
तुम कहीं नहीं मिले
नाराज़ हो क्या ?
कल्पना पाण्डेय
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...
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