"माँ" वो कौन सा समुंदर है
जहाँ से इतना प्यार लाती है ?
आसमान सा अपना आँचल
सदा मुझ पर ओढ़ाती है
पहले लोरी ,अब तेरी दुआएं
मुझे सुकून से सुलाती है
मेरी इक हार पे तू घंटो
क्यूँ आंसू बहाती है ?
तेरी ममता ही तो
मुझे ढांढस बंधाती है
इन्द्रधनुष का हर रंग तू
मेरी मुट्ठी में चाहती है
तू ही सही ,कभी गलत
का अंतर सिखाती है
हर दुःख ,हर सुख में
ईश्वर संग तू ही याद आती है
तेरे चरणों में हर बार
कल्पना नया वात्सल्य पाती है
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें