सफर पर निकलते वक़्त
"खुदा "ने
बस एक किरदार दिया
और कुछ लकीरें दी
मसखरा "इंसान "पूछ बैठा
"खुदा "
जब तू तक़दीर
लिख ही सकता था ,
तो "लकीरों "से क्यों ?
"अक्षरों "से लिख लिया होता
" खुदा " मुस्कुराया
और बोला
गर "अक्षरों "में लिखा होता
तो तू पढ़ लेता
हो सकता है ,
मेरी जुबां पकड़ लेता
जो मैं रच चुका
उसमें तू क्या गढ़ लेता ?
फिर
यहाँ कोई नहीं होता
जो मुझे खुदा कहता
इसलिए
" लकीरों "में
नसीब बक्शा है
इसी में तेरे किरदार से
लिपटा एक नक्शा है
अपने हुनर से इन्हें
आकार दिया करना
खुद में रमा रहना
और कहीं भटक जाये
तो पुकार लिया करना
रविवार, 31 जनवरी 2016
इक सवाल.....
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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