सुबह से रात गुज़र जाती
इस ज़िन्दगी को "ताकते" हुए
वो भी बाज़ नहीं आती
हर पल मुझे "आंकते" हुए
कौन साहिल ?
कौन है समुंदर ?
"तखल्लुस " टांकना मुश्किल है
कभी वो मुझमें है
कभी मैं उसके अंदर
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कनेर
"कनेर" तुम मुझे इसलिए भी पसंद हो कि तुम गुलाब नहीं हो.... तुम्हारे पास वो अटकी हुई गुलमोहर की टूटी पंखुड़ी मैं हूँ... तुम्हें दूर ...

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