बार बार ....तोड़ कर
मुझे गिराने से बेहतर
फिर मरोड़ कर ...कहीं भी
अटकाने से बेहतर
अब ....
"मैं " .....चलना पसंद करूँगी
उस दरख़्त की ओर ....
जो बिना पत्तों के भी
अपनी छाप छोड़ रहा है
मेरी तरह .....इक वजह ढूँढ रहा है
उमींद रोपने की ...जगह ढूँढ रहा है
यकीं है मुझे ...ढूँढ लेंगे हम
"खुद " को .....संग रहते
"मैं ".....पतझर रहते
और ....
"वो "....मेरे रहते
मुझे गिराने से बेहतर
फिर मरोड़ कर ...कहीं भी
अटकाने से बेहतर
अब ....
"मैं " .....चलना पसंद करूँगी
उस दरख़्त की ओर ....
जो बिना पत्तों के भी
अपनी छाप छोड़ रहा है
मेरी तरह .....इक वजह ढूँढ रहा है
उमींद रोपने की ...जगह ढूँढ रहा है
यकीं है मुझे ...ढूँढ लेंगे हम
"खुद " को .....संग रहते
"मैं ".....पतझर रहते
और ....
"वो "....मेरे रहते
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